एड्स के साथ पैदा हुए बच्चे भी जी सकते हैं लंबी जिंदगी :स्टडी

एड्स के साथ पैदा हुए बच्चे भी जी सकते हैं लंबी जिंदगी  :स्टडी

सेहतराग टीम

एचआईवी एड्स का संक्रमण अभी भी एक चिंता का विषय है। खासकर एचआईवी एड्स संक्रमण के साथ पैदा होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर एक बड़ा बोझ बन गया है। हाल ही में एक रिसर्च के अनुसार केवल उप सहारा अफ्रीका में हर दिन करीब 300 से 500 बच्चे एचआईवी से संक्रमित हो रहे हैं। लेकिन अब एचआईवी एड्स संक्रमण के साथ पैदा होने वाले बच्चों को इसके संक्रमण से मुक्ति दिलाई जा सकती है। अमेरिका के रिसर्चरों के अनुसार  एचआईवी संक्रमित बच्चों का अगर पैदा होने के कुछ ही घंटों और दिनों के भीतर ताकतवर दवाओं से इलाज शुरू हो सके तो उनके प्रतिरक्षा तंत्र को बचाया जा सकता है।

अफ्रीकी एचआईवी पीड़ित बच्चों पर रिसर्च के सहलेखक डॉ रोजर शापिरो का कहना है कि, बिना इलाज के एचआईवी संक्रमित 50 फीसदी बच्चे दो साल में मौत के मुंह में चले जाते हैं। साइंस जर्नल ट्रांसलेशनल मेडिसिन ने इस बारे में रिसर्च रिपोर्ट छापी है। यह रिसर्च एचआईवी पीड़ित उन बच्चों के रिसर्च से आगे जाती है जिन्हें पैदा होने के कुछ ही हफ्तों बाद एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी दी गई और वो इस बीमारी से मुक्त हो गए। पहला ऐसा मामला 2010 में मिसिसिपी में पैदा हुए एक बच्चे का था जिसका इलाज पैदा होने के 30 घंटे के भीतर ही शुरू कर दिया गया और कई महीनों बाद जब वायरस पर नियंत्रण हो गया तो उसका इलाज बंद कर दिया गया।

इस स्टडी में अमेरिकी यूनिवर्सिटी हार्वर्ड और एमआईटी के रिसर्चरों ने बोत्सवाना के 40 एचआईवी से संक्रमित बच्चों का जल्दी इलाज शुरू किया। रिसर्चरों ने बताया कि पहले 10 बच्चों को पैदा होने के कुछ ही घंटों के भीतर एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट दिया गया। दुसरे 10 बच्चों का इलाज पैदा होने के चार दिन बाद किया गया और उनकी तुलना 54 ऐसे बच्चों से की गई जो एचआईवी पीड़ित नहीं थे। जब करीब 96 हफ्तों के बाद नतीजों की तुलना की गयी तो उन बच्चों में वायरस कम पाया गया जिनका इलाज जल्दी शुरू किया था। रिसर्चरों ने पाया कि जिन बच्चों का इलाज जल्दी शुरू किया गया था उनका इम्युनिटी सिस्टम उन बच्चों के मुकाबले भी ज्यादा मजबूत था जो एचआईवी एड्स से पीड़ित नहीं थे।  

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मौजूदा दिशानिर्देशों के मुताबिक नवजात बच्चों को एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट पैदा होने के कुछ हफ्तों के भीतर देना शुरु कर दिया जाना चाहिए ताकि वायरस पर लगाम लग सके। अगर ऐसा नहीं होता तो प्रतिरक्षा की कमी बहुत जल्द घातक स्तर पर पहुंच जाती है। शापीरो का कहना है कि शुरूआती इलाज कोई उपचार नहीं है लेकिन दूसरे खोजों के साथ इसे जोड़ कर एचआईवी के रोकथाम को बेहतर बनाया जा सकता है।

रिसर्च  टीम का यह भी कहना है कि कुछ बच्चों पर खासतौर से तैयार किए गए रक्षक एंटीबॉडी का परीक्षण किया जा सकता है। ये एंटीबॉडी एचआईवी को बेकार कर देते हैं। इस तरीके से बच्चों में बीमारी को जीवन भर के इलाज के बगैर भी नियंत्रित किया जा सकता है। यह परीक्षण 2020 में शुरू होंगे।

 

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